गाँव से शहर तक
जब मैंने अपने होश सम्हाले तो मैंने खुद को उत्तर प्रदेश के VIP जिले सिद्धार्थनगर के एक छोटे से गाँव का हिस्सा पाया . मेरी जिंदगी का पहला कदम यही उठा . ये वो गाँव है जंहा विकास पहुचने से पहले से अपाहिज हो जाता है . हिंदुस्तान के तमाम गाँवो की तरह विकास से बंचित इस गाँव में मैंने अपनी जिंदगी के लगभग एक दशक गुजारे .
फिर वक्त ने करवट ली , कुछ हादसों और जरुरतो ने शहर वाला बना दिया . बीते 10 सालो में देश / विदेश के अधिकांश हिस्सों को ( बड़े से लेकर छोटे शहरों तक ) करीब से देखा , समझा और जिया . आज एक बड़े शहर में स्थापित हूँ , खुशहाल , काम , नाम सब कुछ है . कुछ सपने पूरे हुए कुछ होने है . पर आज भी रात में उसी गाँव के खेत और बाग़ और आंगन सपने में आते है , आज भी दौर –ए गर्दिश के वो दिन सबसे हसीं लगते है जब हम दिल से अमीर थे . उस गाँव के खलिहान , बैठके , मंदिर के चबूतरे आज भी रूह में बसे है जंहा पहली बार बोलना सीखा था , जंहा सीखे थे दुनियदारी के तमाम अलिखित नियम , जंहा पहली बार जिया था प्रेम ( शायद प्रेम ही था ) के अहसास को ...
जब मैंने अपने होश सम्हाले तो मैंने खुद को उत्तर प्रदेश के VIP जिले सिद्धार्थनगर के एक छोटे से गाँव का हिस्सा पाया . मेरी जिंदगी का पहला कदम यही उठा . ये वो गाँव है जंहा विकास पहुचने से पहले से अपाहिज हो जाता है . हिंदुस्तान के तमाम गाँवो की तरह विकास से बंचित इस गाँव में मैंने अपनी जिंदगी के लगभग एक दशक गुजारे .
फिर वक्त ने करवट ली , कुछ हादसों और जरुरतो ने शहर वाला बना दिया . बीते 10 सालो में देश / विदेश के अधिकांश हिस्सों को ( बड़े से लेकर छोटे शहरों तक ) करीब से देखा , समझा और जिया . आज एक बड़े शहर में स्थापित हूँ , खुशहाल , काम , नाम सब कुछ है . कुछ सपने पूरे हुए कुछ होने है . पर आज भी रात में उसी गाँव के खेत और बाग़ और आंगन सपने में आते है , आज भी दौर –ए गर्दिश के वो दिन सबसे हसीं लगते है जब हम दिल से अमीर थे . उस गाँव के खलिहान , बैठके , मंदिर के चबूतरे आज भी रूह में बसे है जंहा पहली बार बोलना सीखा था , जंहा सीखे थे दुनियदारी के तमाम अलिखित नियम , जंहा पहली बार जिया था प्रेम ( शायद प्रेम ही था ) के अहसास को ...