Monday, 14 March 2016

गाँव से शहर तक

गाँव से शहर तक
जब मैंने अपने होश सम्हाले तो मैंने खुद को उत्तर प्रदेश के VIP जिले सिद्धार्थनगर के एक छोटे से गाँव का हिस्सा पाया . मेरी जिंदगी का पहला कदम यही उठा . ये वो गाँव है जंहा विकास पहुचने से पहले से अपाहिज हो जाता है . हिंदुस्तान के तमाम गाँवो की तरह विकास से बंचित इस गाँव में मैंने अपनी जिंदगी के लगभग एक दशक गुजारे .
फिर वक्त ने करवट ली , कुछ हादसों और जरुरतो ने शहर वाला बना दिया . बीते 10 सालो में देश / विदेश के अधिकांश हिस्सों को ( बड़े से लेकर छोटे शहरों तक ) करीब से देखा , समझा और जिया . आज एक बड़े शहर में स्थापित हूँ , खुशहाल , काम , नाम सब कुछ है . कुछ सपने पूरे हुए कुछ होने है . पर आज भी रात में उसी गाँव के खेत और बाग़ और आंगन सपने में आते है , आज भी दौर –ए गर्दिश के वो दिन सबसे हसीं लगते है जब हम दिल से अमीर थे . उस गाँव के खलिहान , बैठके , मंदिर के चबूतरे आज भी रूह में बसे है जंहा पहली बार बोलना सीखा था , जंहा सीखे थे दुनियदारी के तमाम अलिखित नियम , जंहा पहली बार जिया था प्रेम ( शायद प्रेम ही था ) के अहसास को ...

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